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आखिर लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है भई, यह मीडिया है जो हर किसी घटना को हमारे सामने लाता है. इसके कन्धों पर इतनी जिम्मेदारियॉ डाल दी गई हैं कि अब उठाना मुश्किल हो रहा है. लोकतंत्र की अर्थी उठाने के लिये चार कन्धों की जरूरत थी. तीन कन्धे तो हमारे संविधान ने दिए पर चौथा कन्धा खुद मीडिया ही बनने की कोशिश कर रहा है.
क्या ना कराए यह टीआरपी का चक्कर!आखिर रेवेन्यू का मूलाधार जो है यह. तो सिर्फ पैसे कमाने का चक्कर है क्या यह. टीआरपी का चक्कर इतना खतरनाक होगा यह अगर पहले पता होता तो सरकार जरूर सचेत हो जाती और कोई जांच आयोग बैठा देती इसका पता लगाने को. पर अब तो देर हो चुकी है और इस क्षेत्र में बड़े खिलाड़ी प्रवेश कर गए हैं जो सरकार से भारी हैसियत रखते हैं.
लोकतंत्र के अन्य सभी भक्षकों की तरह क्या चौथा स्तम्भ भी इसी भूमिका में आ गया है? जिससे उम्मीद थी कि वह आज़ाद भारत के सपनों को पूरा करने में निरंतर सहयोग करेगा वही अपनी जिम्मेदारियों से भागेगा तो क्या अन्य स्तम्भ अपना कर्तव्य ठीक से निभा सकेंगे?
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